۱ آذر ۱۴۰۳ |۱۹ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 21, 2024
حضرت امام خمینی

हौज़ा/3 जून 1989 दुनिया भर के मुसलमानों के रहबर, आज़ादी चाहने वालों के दिलों की धड़कन, आज़ादी के मतवालों को जिंदगी के आदाब सिखाने वाले मुजाहिद, अल्लाह की सच्ची मारेफ़त रखने वाले, बा अमल आलिम, फ़क़ीह, मुज्तहिद, लेखक और इस्लामी इन्क़ेलाब की बुनियाद रखने वाले आयतुल्लाह इमाम ख़ुमैनी र.ह. की बरसी का दिन है, आपकी शख़्सियत बे मिसाल है और यही वजह थी कि दुनिया भर के बड़े बड़े उलमा, विद्वान यहां तक कि राजनेता आपसे मिलने की आरज़ू करते थे।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , इमाम ख़ुमैनी र.ह. की ज़िंदगी पर एक निगाह ,3 जून 1989 दुनिया भर के मुसलमानों के रहबर, आज़ादी चाहने वालों के दिलों की धड़कन, आज़ादी के मतवालों को जिंदगी के आदाब सिखाने वाले मुजाहिद, अल्लाह की सच्ची मारेफ़त रखने वाले, बा अमल आलिम, फ़क़ीह, मुज्तहिद, लेखक और इस्लामी इन्क़ेलाब की बुनियाद रखने वाले आयतुल्लाह इमाम ख़ुमैनी र.ह. की बरसी का दिन है, आपकी शख़्सियत बे मिसाल है और यही वजह थी कि दुनिया भर के बड़े बड़े उलमा, विद्वान यहां तक कि राजनेता आपसे मिलने की आरज़ू करते थे।
जिसने पांच साल की उम्र में यतीमी के दुख को सहन किया हो और पंद्रह साल की उम्र में आप की मेहेरबान और बेहद मोहब्बत करने वाली मां और चहेती फ़ुफ़ी ने भी इस दुनिया को छोड़ दिया, यक़ीनन इन्हीं दुख और मुश्किलों के मुक़ाबले ने उन्हें मज़बूत इरादे का मालिक बनाया था जिसकी वजह से वह महान कारनामे अंजाम दे सके, आप के वालिद की शहादत के बाद आपके बड़े भाई सैयद मुर्तज़ा पसंदीदा ने आप की परवरिश की, आप 19 साल तक अपने वतन ख़ुमैन में शुरूआती तालीम हासिल करते रहे, फिर उच्च स्तर की तालीम हासिल करने के लिए अराक (तेहरान से २८० कि.मी ईरान का एक शहर) गए वहां आयतुल्लाह शैख़ अब्दुल करीम हायरी और आयतुल्लाह शाहाबादी से तालीम हासिल करते रहे, जब आयतुल्लाह शैख़ हायरी ने क़ुम की तरफ़ सफ़र किया तो आप भी उन्हीं के पीछे क़ुम आ गए और वहां तालीम भी हासिल करते रहे और ख़ुद भी दर्स देते रहे, आपके फ़लसफ़े के दर्स में 500 लोग आते थे, दर्स और दूसरे कामों के साथ साथ 24 अहम किताबें लिखी और 27 साल की उम्र में आप इज्तेहाद के दर्जे पर भी पहुंच गए थे, इसी उम्र में आपने मिर्ज़ा मोहम्मद सक़फ़ी की बेटी से शादी की।

आप का दौर तानाशाह मोहम्मद रज़ा पहेलवी की हुकूमत का दौर था, मोहम्मद रज़ा साम्राज्यवादी देशों का पिठ्ठू था, वह एक बे दीन और इस्लाम का दुश्मन इंसान था जिसकी असली दुश्मनी हौज़े और दीनी मदरसों से थी, वह नौजवान स्टूडेंट्स को ना हक़ सताया करता था, उसने अज़ादारी पर पाबंदी लगाई कि कहीं उलमा लोगों को दीन और उनके बुनियादी हुक़ूक़ के बारे में बेदार न कर दें, उसी दौर में औरतों को पर्दा करने से रोका जा रहा था, हर तरफ़ दीन और क़ानून का विरोध हो रहा था, और जब अली रज़ा शाह, मोहम्मद रज़ा के वज़ीर असदुल्लाह ने बिल पास किया कि चुनाव में उम्मीदवार और वोटर के मुसलमान होने की शर्त को ख़त्म कर दिया जाए और क़ुरआन की क़सम खाने को भी हटा दिया जाए, यह एक बड़ी साज़िश थी कि देश पर विदेशी ताक़तों और इस्लाम दुश्मन देशों को हाकिम बनाने का रास्ता खोल दिया जाए, क़ुम शहर के उलमा ने इमाम ख़ुमैनी र.ह. के नेतृत्व में इस बिल के विरुध्द आवाज़ बुलंद की और इस बिल को कैंसिल करवाया, हुकूमत ने उलमा से आम जनता का रिश्ता तोड़ने के लिए इंसानी हुक़ूक़ और महिलाओं के हुक़ूक़ गुमराह करने वाले नारे लगाए ताकि उलमा और आम नागरिक के बीच फूट डाली जा सके लेकिन आम जनता इमाम ख़ुमैनी का साथ देते हुए रज़ा शाह की इस्लाम दुश्मनी के विरुध्द आवाज़ उठाते रहे, आम जनता और उलमा के विरोध से बौखला कर 22 मार्च 1963 में इमाम जाफ़र सादिक़ अ.स. की शहादत के दिन फ़ैज़िया मदरसे पर हमला करवा दिया जिसमें कई उलमा शहीद हो गए, इमाम ख़ुमैनी ने इस हादसे के बाद डट कर तानाशाही का मुक़ाबला किया आपने अपने दर्स, अपनी तक़रीर, अपने बयान और ख़त के द्वारा लगातार तानाशाह मोहम्मद रज़ा पहेलवी का ज़ोरदार विरोध करते हुए कहते कि मैं तुम्हारे फ़ौजियों की सख़्तियां उनके अत्याचार बर्दाश्त कर लूंगा लेकिन तुम्हारी बे दीनी और इस्लाम दुश्मन बातें स्वीकार नहीं करूंगा, ऐ रज़ा शाह सुन! जब रूस, ब्रिटेन और अमेरिका ने ईरान पर हमला किया तो लोग नुक़सान के बावजूद ख़ुश थे कि पहेलवी चला गया कहीं तुझे भी भागना न पड़े तू तो 45 साल का हो गया है अब अपनी करतूतों को बंद कर और अत्याचार के सिलसिले को रोक दे और पब्लिक को गुमराह करने वाले औरत मर्द की बराबरी की नारेबाज़ी को बंद कर और इस्राईल और बहाईयत के प्रचार और उनके समर्थन से हाथ रोक ले।

इमाम ख़ुमैनी के इस तरह के बयानात से पूरे ईरान में नया जोश और जज़्बा पैदा हो चुका था, इमाम ख़ुमैनी की विचारधारा लोगों में तेज़ी से असर कर रही थी जिसकी वजह से लोग तानाशाह मोहम्मद रज़ा के ख़िलाफ़ सड़कों पर उतर चुके थे जिससे बौखला कर उसने 5 जून 1963 को एक बार फिर धरना देने वालों पर गोलियां चलवा दी जिसमें लगभग 15 हज़ार लोगों की जानें चली गईं, इसके बाद इमाम ख़ुमैनी को भी नज़रबंद कर दिया और फिर जिलावतन भी कर दिया, आपने यह समय पहले तुर्की फिर इराक़ और फिर थोड़ा समय फ़्रांस में बिताया, इस दौरान आप इन्क़ेलाबी उलमा की तरबियत करते रहे जिन्होंने ख़ुद ईरान और ईरान के बाहर इन्क़ेलाब का माहौल तैयार किया, इमाम ख़ुमैनी ने इस्लामी हुकूमत का एक ढांचा तैयार किया और इस्लामी हुकूमत के नाम से एक किताब भी लिखी और 15 साल जिलावतन की ज़िंदगी गुज़ारने के बाद 1 फ़रवरी 1979 को ईरान वापस आए और इस्लामी हुकूमत की बुनियाद रखी और 11 साल तक आप उस हुकूमत का नेतृत्व करते रहे और फिर 3 जून 1989 रात 10 बज कर 20 मिनट पर आप अपने हक़ीक़ी मालिक जिसकी राह में अपनी ज़िंदगी वक़्फ़ कर रखी थी उसी से जा मिले।

यौम ए वफ़ात बानी ए इन्क़ेलाब ए इस्लामी ए ईरान हज़रत इमाम ख़ुमैनी र.अ

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